
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि इन रिक्रूट्स ने साधारण समस्याओं व सुनी-सुनाई बातों और अफवाहों के कारण प्रशिक्षण के नियमों का उल्लंघन करते हुए सड़क जाम की। जिसके बाद इन चारों को नोटिस भेजकर स्पष्टीकरण मांगा गया। जवाब संतोषजनक न होने के चलते चारों को सेवामुक्त कर दिया गया। इन सभी रिक्रूट कान्स्टेबलों को अनुशासनहीनता का दोषी पाया गया है। इस पूरे मामले पर लोग यूपी पुलिस की काफी तारीफ कर रहे हैं। निश्चित तौर पर अनुशासन का जीवन में विशेष महत्व है और पुलिस जैसे विभागों में तो अनुशासन ही ड्यूटी का आधार होता है लेकिन क्या मामला बस इतना ही है? नहीं, बात यहीं खत्म नहीं होनी चाहिए क्योंकि जिस तरह की कार्रवाई इन महिला आरक्षियों पर की गई है, वह प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है। साफ शब्दों में कहूं तो यह अनुशासनहीनता पर की गई कार्रवाई नहीं बल्कि सभी पुलिसकर्मियों को एक चेतावनी है कि 'तुमको जैसे रखा जाए रहो, कुछ मत बोलो, सही की मांग मत करो, बस शांत रहो और घिसते रहो खुद को चुपचाप।'
हम हमेशा पुलिसकर्मियों को गालियां देते हैं। कमियां उनमें हैं लेकिन वे 'अछूत' नहीं हैं। हमारे-आपके घरों के बच्चे पुलिस में जाते हैं। क्या गलती थी इन लड़कियों की। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो रिक्रूट ट्रेनिंग सेंटर पुलिस लाइन में प्रशिक्षण ले रहीं महिला कान्स्टेबलों का आरोप था कि रिक्रूट ट्रेनिंग सेंटर पुलिस लाइन में एक रात किसी बाहरी युवक ने बैरक की खिड़की से हाथ डालकर छेड़छाड़ की। जब लड़कियों ने शोर मचाया तो वह भाग गया लेकिन आरआई मौके पर नहीं पहुंचे। इनका कहना था कि यह बैरक पुरुष प्रशिक्षार्थियों के लिहाज से बना है, इनकी दीवारें छोटी हैं, जिससे बाहरी लोग अंदर आ जाते हैं, महिलाओं की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। बैरक से बाथरूम भी दूर है वह खुला भी है जिससे बाहरी लड़के तांक-झांक करते हैं। ये छोटे आरोप थे?
और क्या मांगा था इन लड़कियों ने? सुरक्षा के अलावा लाइट और खिड़कियों में शीशे ही तो मांगे थे। बहुत कठिन ट्रेनिंग करवानी थी तो मना कर देते लेकिन अगर इन चीजों के न होने की वजह से किसी महिला के साथ छेड़छाड़ की जा रही है तो साहब, आपकी जिम्मेदारी थी कि ये चीजें उपलब्ध कराई जाएं। लाइट की पर्याप्त व्यवस्था न होने से, खिड़की में शीशा न होने से, पर्याप्त ऊंचाई की बाउंड्री न होने से इन महिला प्रशिक्षुओं को असुरक्षा की भावना महसूस होती थी तो इस असुरक्षा को दूर किए जाने की जरूरत थी, ना कि एक कमिटी बनाकर मामले में छेड़छाड़ के आरोप को गलत बता दें और महिलाओं के प्रदर्शन का ठीकरा चार लड़कियों पर फोड़कर मामला खत्म कर देना चाहिए था।
एक बार कल्पना करके देखिए कि शुरुआती ट्रेनिंग में ही बता दिया जाता है कि प्रदर्शन वगैरह करने से आपकी नौकरी जा सकती है। क्या पुलिस लाइन के बाहर प्रदर्शन करने वाली सैकड़ों लड़कियों को अपनी नौकरी की चिंता नहीं रही होगी? क्या उन्होंने नहीं सोचा होगा कि अगर उन्होंने ऐसा किया तो कड़ी मेहनत के बाद मिली नौकरी से उन्हें हाथ धोना पड़ सकता है? क्या उन्हें अपने परिवार का ख्याल नहीं आया होगा? उन सभी ने इन सारी चीजों के बारे में सोचा होगा लेकिन नौकरी जाने से बड़ा कोई 'डर' रहा होगा, जिसने उन्हें पुलिस लाइन के बाहर प्रदर्शन करने को मजबूर किया। मैं भी एक महिला हूँ, मेरा मानना है कि किसी भी महिला के लिए उसकी इज्जत से बढ़कर नौकरी नहीं हो सकती और अगर किसी महिला को अपनी इज्जत को दांव पर लगाकर नौकरी करनी पड़े, तो हमें यह सोचना पड़ेगा कि क्या वाकई इस देश में हम महिलाओं को सुरक्षा दे पा रहे हैं। क्या एक लड़की की इज्जत से बढ़कर तथाकथित अनुशासन होना चाहिए? क्या उन शोहदों का कोई दोष नहीं जो हमारी बेटियों को छेड़ते हैं, उनकी कोई सजा नहीं? फिर तो बात वहीं आकर टिक गई कि पुरानी परंपरा के अनुसार बेटियों को ही दबाकर बैठा लो क्योंकि वो तो बेटियां हैं, बेटों का क्या वो तो कुछ भी कर सकते हैं, क्योंकि वो बेटे हैं। अगर अनुशासन इतना ही महत्वपूर्ण है तो जहां उन महिला आरक्षियों के रुकने का इंतजाम किया गया है जिसमें न लाइट है, न बाथरूम में दरवाजे हैं, न पर्याप्त ऊंचाई की बाउंड्री है, न खिड़कियों में शीशा हैं तो ऐसी परिस्थिति में किसी भी लड़की का बलात्कार भी हो जाए तो उसे अनुशासन को ध्यान में रखकर चुप्पी साध लेनी चाहिए, उसे इसके खिलाफ आवाज नहीं उठानी चाहिए।
डीजीपी साहब! आप इन सभी महिला रिक्रूट कान्स्टेबलों के अभिभावक थे, आपकी जिम्मेदारी थी कि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करते लेकिन आपने तो लड़कियों से सपने देखने का हक ही छीन लिया। आपकी जांच कमिटी ने तो कह दिया कि छेड़खानी नहीं हुई लेकिन क्या मानवीय दृष्टिकोण से आपने अपने विवेक से सोचा कि एक महिला, जो खुद को समाज की जिम्मेदारी लेने के लिए खुद को तैयार कर रही है, वह यूं ही अपने साथ छेड़खानी होने की बात करने लगेगी? डीजीपी सर, वैसे तो यह आपके अपने विभाग का मामला है और मैं एक नागरिक, मुझे आपके विभाग की कार्रवाई के बीच बोलने का हक तो नहीं है लेकिन एक महिला होने के नाते मैं आपसे पूछती हूं कि क्या अब कोई लड़की पुलिस में भर्ती होकर पूरी निष्ठा के साथ काम करने की हिम्मत जुटा पाएगी? क्या एक लड़की को घर से लेकर नौकरी तक, हमेशा इस तरह के 'समझौतों' के साथ ही जीना होगा? सर, उन लड़कियों की नौकरी लेकर आपने शायद अपनी नजर में यह मैसेज दिया हो कि पुलिस विभाग में अनुशासन हीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी लेकिन एक महिला के तौर पर मेरी नजर से यह एक पाबंदी है लड़कियों की सोच पर, यह एक साफ मैसेज है कि भले ही हमें दो हाथ के घूंघट से आजादी मिल गई हो लेकिन हमें इस सोच से आजादी नहीं मिल सकती कि लड़कियों को चुपचाप सबकुछ बर्दाश्त करना होगा।
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