किसी ने कहा था कि शब्द अमर होते हैं, वे कभी नहीं मरते। जो हम बोलते हैं, वे भी 'जीवित' रहते हैं और जो हम लिखते हैं, वे तो रहते ही हैं। तब से नापतोल कर बोलने-लिखने की कोशिश करती हूँ। कोशिश रहती है कि मेरे शब्द उनकी आवाज बनें, जिनकी आवाज कहीं किसी वजह से दब गई है, या जानबूझकर दबा दी गई है। जिम्मेदारी के साथ लिखना पसन्द है। सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर लिखने का उद्देश्य है कि भीड़ में एक आवाज मेरी भी हो, बस 'अकेली' ना हो.....